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#IDWGS Essay - विज्ञान नेतृत्व में महिलाएँ और लड़कियाँ | प्रगति प्रणव

परिचय- विज्ञान आज के मानव-जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अश्रुतपूर्व आविष्कार से अछूता नहीं रहा। विज्ञान ने पुरूष और नारी सभी को और सभी क्षेत्र में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुगृहीत किया है। समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। वैज्ञानिकों ने शोध एवं नये-नये आविष्कार तथा खोज में लगे है। ताकि हर क्षेत्र में विकास संभव हो सकें। इस आविष्कार एवं शोध कार्य में महिला वैज्ञानिकों का योगदान बराबर है चाहे वह उच्च शिक्षा का क्षेत्र हो, गणित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग का क्षेत्र हो काफी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही है। अपनी पहचान बना रही है। 

महिलाएँ एवं लड़कियाँ ने इसे विज्ञान वरदान के रूप में लिया है। इस कारण महिलाएँ एवं लड़कियाँ को विज्ञान की आवश्यकता है। जोकि विज्ञान में ज्ञान हासिल कर अपनी क्षमता, जज्बा का प्रतिभा दिखा सकें। लड़कों एवं पुरूषों के बराबर महिलाएँ अब कुछ भी कर दिखानें में सक्षम है। लेकिन समाज के लोगों की रूढ़िवादी मानसिकता के कारण आज लड़कियों तथा महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारतीय समाज में महिलाओं और लड़कियों को घरेलू काम के ही अनुकूल माना गया है। घर में महिलाओं का मुख्य काम भोजन की व्यवस्था करना है। महिलाओं को बच्चों के लालन-पालन तक ही सीमित रखा जाता है। 

आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत महिला और पुरूष के पारिश्रमिक में अंतर है। महिलाओं को पुरूषों के सापेक्ष कम वेतन दिया जाता है। इसके लिए कई सामाजिक संगठन ने विश्व स्तर पर अपनी आवाज बुलंद कियें है। रोजगार में महिलाओं के पास पुरूषों से कम मौके होते है। कम वेतन, काम की जिम्मेदारी,तरक्की में आज भी तमाम बाधाएँ हैं। अक्सर महिलाओं को मजदूरी के मुताबिक वेतन नहीं दिया जाता है। 

जब दफतर में महिला, पुरूष समान पद,समान जिम्मेदारी पर होने के बाद भी बराबर वेतन पाने की हकदार नहीं होती। प्रमोशन से लेकर तरक्की के हर पायदान पर अहसास कराया जाता है कि वो महिला हैं। उन्हें तरक्की, अच्छे वेतन की आवश्यकता पुरूषों से कम है। दफतरों में आज भी महिलाएँ लैंगिक असमानता का शिकार है। लैंगिक असमानता के कारण सामाजिक, आर्थिक, रातनीतिक, वैज्ञानिक क्षेत्र के अलावे मनोरंजन क्षेत्र, चिकित्सा क्षेत्र और खेल क्षेत्र में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है। 

जबकि महिलाएँ दुनियां की कुल आबादी का करीब-करीब आधा हिस्सा है। लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए महिलाओं और लड़कियों को अपने अधिकार के लिए भारत देश के अलावे दुनियां में आवाज बुलंद करनी होगी। इसके लिए विश्व सामाजिक संगठन को आगे आना होगा। ताकि लैंगिक असमानता खत्म हो सके और बराबर का भागीदारी मिल सकें। लड़कियों और महिलाओं को बराबर अधिकार प्राप्त होने से हमारा समाज एवं दुनियां के सभी वर्ग साथ मिल कर प्रगति करते है। क्योंकि यह महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्र रूप से तकनीकि शिक्षा प्राप्त कर जीवन में अन्य कार्य करने का अवसर मिल सकें। 

इस प्रकार वे परिवार में समान सम्मान और सम्मान का आनंद ले सकें। महिला और लड़की विज्ञान प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में पुरूषों के बराबर कार्य कर हर क्षेत्र में विकास कर सकें। महिलाएँ और लड़कियाँ औद्योगिक प्रतिष्ठान में आविष्कार एवं शोध कार्य कर नये-नये उत्पादन कर रही है। जो हमारे बीच देखने को मिलता है। अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-3 के सफलतापूवर्क चाँद पर स्थापित होने में भारतीय महिला वैज्ञानिकों का योगदान सराहनीय रहा है। चंद्रयान-3 के पूर्व चंद्रयान-2 एवं चंद्रयान-1 मिशन में महिला वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला पहली महिला थी। 

इन्हें छोटे से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई जानता है। कल्पना चावला लंबे समय तक अंतरिक्ष में रही। इसी तरह सुनीता विलियमस जो कि अमेरिकी अंतरिक्ष नासा के द्वारा अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला है। जो अंतरिक्ष यात्री के रूप में विश्व कीर्तिमान स्थापित कर देश का गौरव बढ़ाया है। महिलाओं एवं लड़कियों का वर्ग चिकित्सा, कृषि, खेल एवं अन्य कला, मनोरंजन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल किया है। महिलाएँ आधुनिक युग में धरती से आसमान तक हर जगह पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है, लेकिन आज भी उच्च शिक्षा से लेकर शोध संस्थानों व कार्य क्षेत्र तक, हर जगह पर उनके योगदान को उतना महत्व नहीं दिया जाता है। 

जबकि तमाम तरह की चुनौतियों को सामना करते हुए महिलाएँ अतुलनिय कार्य कर पुरस्कृत किये जाते है। इनमें रसायन विज्ञान के मशहूर वैज्ञानिक दर्शन रंगनाथन थीं। इन्होंने कार्य के दौरान यूरिया चक्र और प्रोटीन जैसे संरचना पर कई खोज किये है। गन्ना की हाइब्रिड प्रजाति की खोज एवं क्राॅस ब्रीडिंग पर शोध के लिए जानकी अम्माल को जाना जाता है। पहली महिला इंजीनियर के रूप में राजेश्वरी चटर्जी की पहचान की जाती है। विश्व में ऐसे महिलाएँ पुरस्कृत कर कीर्तिमान स्थापित किये है। भारत एवं विश्व में आधुनिकीकरण के बाद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अलावे अन्य कार्य क्षेत्र में महिलाएँ तथा लड़कियाँ नये आविष्कार में लगे है। ताकि भारत एवं विश्व को टेक्नाॅलोजी के क्षेत्र में मजबूती प्रदान की जा सकें।

About the Author
Pragati Pranav I am a resident of Giridih Jharkhand.I am the first daughter of my family.I am also involved in household chores along with study work. Apart from this, I also participate in writing and sports.I do painting work inside the house.Neighboring children also take part in painting.Children are very happy to take part in this work.and also work at home. It gives me great pleasure to see the child's work.Also, the child's family members praise him. Children also participate in painting art in school and get awards in their name.May this effort of mine be useful to the children.

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